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सर गुज़िश्त आज़ाद बख्त बादशाह की

                                                


                                                सर गुज़िश्त आज़ाद बख्त बादशाह की 

 

 

          जब दूसरा दरवेश  भी अपने सैर का क़िस्सा कह चूका ,रात आखिर हो गयी और वक़्त सुबह का शुरू होने पर आया ,बादशाह आज़ाद बख्त  चुपके से अपने दौलत खाने में रवाना हुआ। महल में पहुंच कर नमाज़ अदा की। फिर ग़ुस्ल खाने में  जा खिलअत (क़ीमती) फख्र पहन कर ,दीवान आम में तख़्त पर निकल बैठा ,और हुक्म किया की नाश्ता लगाया जाये।  चार फ़क़ीर फुलाने मकान पर वारिद है ,उनको बा इज़्ज़त अपने साथ अपने साथ हुज़ूर में ले आये। हुक्म के मुताबिक़ चोब दार वहा गया। देखा तो चारो बे नवा झाड़ झटका फिर ,हाथ मुंह धो कर  ,चाहते  है की  दिसा करे ,और अपनी अपनी राह ले। चेले ने कहा : शाह जी ! बादशाह ने चारो सुरतो को तलब किया ,मेरे साथ चलिए। चार दरवेश आपस में एक एक को ताकने लगे ,और चोब दार से कहा : बाबा ! हम अपने दिल के बादशाह है  ,हमें दुनिया के बादशाह से क्या काम ?उसने कहा : मिया अल्लाह ! कोई बात नहीं ,अगर चलो तो अच्छा है।

इतने में चारो को याद आया की मौला मुर्तज़ा( र.अ ) ने जवाब फ़रमाया था ,सो अब पेश आया। खुश हुए और नाश्ते के तरफ चले। जब क़िले में पहुंचे और रु बा रु बादशाह के गए ,चारो क़लन्दरो ने दुआ दी की बाबा ! तेरा भला हो। बादशाह  दीवान खास में जा बैठे ,और दो चार खास अमीरो को बुलाया और फ़रमाया की चारो गुदड़ी पोशो को बुलाओ। जब वह गए  ,हुक्म बैठने का किया ,अहवाल पुरसी फ़रमाई की तुम्हारा कहा से आना हुआ और कहा का इरादा  है ?मकान मुर्शिदों के कहा है ?

उन्होंने कहा की बादशाह की उम्र दौलत ज़्यदा रहे ,हम फ़क़ीर है ,एक मुद्दत से इसी तरह सैर व सफर करते फरते  है ,खाना बिदोष है। वह मिस्ल है :फ़क़ीर को जहा शाम हुई ,वही घर है। और जो कुछ इस दुनियाए न पायेदार  में देखा है ,कहा तक बयान करे ?

आज़ाद बख्त ने बहुत तसल्ली और तश्फी की ,  और खाने को मंगवा कर ,अपने रु बा रु करवाया। जब फारिग हुए ,फिर फ़रमाया की अपना माजरा तमाम मुझसे कहो ,जो मुझसे तुम्हारी खिदमत हो सकेगी ,क़ुसूर न करूंगा। फ़क़ीरों ने जवाब दिया  की हम पर जो जो बीता है ,न हमें ब्यान करने की ताक़त है और न बादशाह को सुनने से ख़ुशी होगी  ,इसको माफ़ कीजिये। तब बादशाह ने मुस्कुराया और कहा : शब् को जहा तुम बिस्तरों पर बैठे अपना अपना  अहवाल कह रहे थे ,वह मैं भी मौजूद था ,चुनांचा दो दरवेश का अहवाल सुन चूका हु। अब चाहता हु दोनों जो बाक़ी है  वह भी कहे। और चंद रोज़ बा खातिर जमा मेरे पास रहे ,.बादशाह से यह बात सुनते ही मारे खौफ के कांपने लगे , सर निचे करके चुप रहे ,ताक़त बोलने की न रही।

आज़ाद बख्त ने जब देखा की अब इनमेमारे रुअब के हवास नहीं रहे जो कुछ बोले फ़रमाया की इस जहां में कोई शख्स ऐसा न होगा ,जिस पर एक न एक वारदात अजीब व गरीब न हुई होगी। बावजूद के मैं बादशाह हु ,लेकिन मैंने भी  ऐस तमाशा देखा है की पहले मैं ही बयान करता हु ,तुम बा खातिर जमा सुनो।  दरवेशो ने कहा :बादशाह सलामत !आपका अल्ताफ फ़क़ीरों के हाल पर ऐसा है ,इरशाद फरमाइए ,आज़ाद अख्त ने अपना अहवाल शुरु किया  और कहा ,

मेरे क़िब्ला गाह ने जब वफ़ात पायी और मैं उस तख़्त पर बैठा ,सामने आलम शबाब का था ,और सारा यह मुल्क ररोम का मेरे हुक्म में था। अचानक एक साल कोई सौदागर बदख़्शा के मुल्क से आया ,और असबाब तेजारत का बहुत सा लाया।  ख़बरदारो ने मेरे हुज़ूर में खबर की की ऐसा बड़ा ताजिर आज तक शहर में नहीं आया। मैंने उसको तलब फ़रमाया।

वह तोहफे हर एक मुल्क  के लायक मेरी नज़र के ले कर आया। उसी वक़्त हर एक जींस बे बहा नज़र आयी। चुनांचा एक डिबिया में लाल था ,निहायत खुश रंग और अब दार ,कदो क़ामत दुरुस्त ,और वज़न में पांच मिसकाल का।  मैंने बावजूद सल्तनत के ,ऐसा जवाहर कभी न देखा था ,और न किसी से सुना था ,पसंद किया। सौदागर को बहुत सा इनआम  व अकरम दिया ,और सनद राहगीरी की लिख दी की उससे हमारी तमाम क़लम रो में कोई महसूल का  न हो।  और जहा जाये ,उसको आराम से रखे चौकी पहरे में हाज़िर रहे ,और अदब सल्तनत से खूब वाक़िफ़ था  ,और तक़रीर खुश गोई उसके लायक सुनने के थी। और मैं उस लाल को हर रोज़ जवाहर खाने से मंगवा कर  ,सरे दरिया देखा करता।

 

            एक रोज़ दीवान आम किये बैठा था। और उम्रा ,अरकान दौलत अपने अपने पाए पर खड़े थे। और हर मुल्क के बादशाहो के  एलची मुबारक बाद की खातिर जो आये थे। वह भी सब हाज़िर थे ,उस वक़्त मैंने हर रोज़ की तरह उस लाल को मंगवाया। जवाहर खाने का दरोगा लेकर आया। मैं हाथ में लेकर तारीफ करने लगा ,फरंग (अँगरेज़) के एलची को दिया।  उसने देख कर मुस्कुरया और ज़माना  साज़ी से सिफत की। इसी तरह हाथो हाथ हर एक ने लिया और देखा  और एक ज़बान होकर बोले की क़िब्ला आलम के इक़बाल के होने के नाते यह नसीब हुआ है ,वार्ना किसी  बादशाह के हाथ आज तक ऐसा रक़म बे बहा नहीं लगा। उस वक़्त मेरे क़िब्ला गाह का वज़ीर की मर्द दाना था ,और उसी खिदमत पर सरफ़राज़ था ,विजारत की चौकी पर खड़ा था ,आदाब बजा लाया और इल्तेमास किया  की कुछ अर्ज़ किया चाहता हु ,अगर जान बख्शी हो। 

मैंने हुक्म किया कह ,वह बोला : क़िब्ला आलम !  आप बादशाह है ,और बादशाहो से बहुत छुपी है की एक पत्थर की इतनी तारीफ  करे। अगरचे रंग ढंग संग में कोई जवाब नहीं है ,लेकिन पत्थर है। और इस दम सब मुल्को के एलची  दरबार में हाज़िर है ,जब अपने अपने शहर में जायँगे ,अलबत्ता यह नक़ल करंगे की अजब बादशाह है की एक लाल  कही से पाया है ,उसे ऐसा तोहफा बनाया है की रोज़ बा रु मगाता है ,और आपकी तारीफ कर् कर सबको दिखाता है। बीएस जो बादशाह यह अहवाल सुनेगा ,अपनी मजलिस में हंसेगा। खुदा वंदा एक अदना सौदागर निशापुर में है ,उसने बारह दाने लाल के की हर एक सात सात मिसकाल का है ,पत्ते म नस्ब (लिख) कर कर ,कुत्ते के गले में डाल दिए है। मुझे सुनते ही गुस्सा चढ़ आया ,और खिस्यानी   होकर फ़रमाया की इस वज़ीर की गर्दन  मारो।

जल्लादो ने वही उसका हाथ पकड़ लिया और चाहा की बाहर ले जाये फरंग का बादशाह का एलची रु  बा रु आ  खड़ा। मैंने पूछा की तेरा क्या मतलब है ?उसने अर्ज़ की : उम्मीद वार हु की तक़सीर से वज़ीर की वाक़िफ़ हो। मैंने फ़रमाया की  झूट बोलने से और बड़ा गुनाह कौन सा है ,ख़ुसूसन बादशाहो के रु बा रु ?उसने कहा : उसका दरोग साबित नहीं हुआ  ,शायद जो कुछ की अर्ज़ की है सच हुआ ! अभी भी गुनाह का क़त्ल करना ठीक नहीं। उसका मैंने यह जवाब दिया  की हरगिज़ अक़्ल में नहीं आता ,एक ताजिर की नफा के वास्ते शहर बा शहर और मुल्क मुल्क  खराब होता फिरता है ,और कौड़ी कौड़ी जमा करता है ,बारह दाने लाल के जो वज़न में सात सात ग्राम के हो  ,कुत्ते के पट्टे में लगये। उसने कहा : खुदा की क़ुदरत से ताज्जुब नहीं। शायद की बाशीद। ऐसे तोहफे अक्सर सौदागरो ,और फ़क़ीरों के हाथ आते है। इस वास्ते की यह दोनों हर एक मुल्क में जाते है ,और जहा से जो कुछ पाते है ,ले आते है। सलाह दौलत यह है की अगर वज़ीर ऐसा ही तक़सीर वार है ,तो हुक्म क़ैद का हो। इसलिए की वज़ीर  बादशाहो की अक़्ल होते है। और यह हरकत सलातीनो से बेकार है की ऐसी बात पर की झूठ सच उसका साबित  नहीं हुआ ,हुक्म क़त्ल का फरमाए ,और उसकी तमाम उम्र की खिदमत और नामक हलाली भूल जाये।

बादशाह सलामत ! अगले शहर यारो ने बंदी खाना इसी सबब से ईजाद किया है की बादशाह या सरदार अगर किसी  पर गज़ब हो ,तो उसे क़ैद करे। कई दिन में गुस्सा जाता रहेगा ,और बे तक़सीरी उसकी ज़ाहिर होगी  ,बादशाह खून न हक़  से महफूज़ रहेंगे ,कल को रोज़े क़यामत में हाज़िर न होंगे। मैंने जितना उसके क़ाएल करने को चाहा  ,उसने ऐसी माक़ूल गुफ्तुगू की की मुझे ला जवाब किया। तब मैंने कहा की खैर तेरा कहना पज़ीर हुआ ,मैं खून से उसके  दरगुज़रा ,,लेकिन ज़न्दान में क़ैद रहेगा। अगर एक साल के अरसे में उसका सुखंन राह हुआ की ऐसे लाल कुत्ते के गले में है   ,तो उसकी निजात होगी ,और नहीं तो बड़े अज़ाब से मारा जायेगा। फ़रमाया की वज़ीर  को पंडित खाने में जाओ। यह हुक्म सुन कर ,एलची ने ज़मीन खिदमत की चूमि और तस्लीमात की।

जब यह खबर वज़ीर के घर में गयी ,आह वावेला मचा और मातम सिरा हो गया। उस वज़ीर की एक बेटी थी ,बरस चौदा पंद्रह बरस की ,निहायत खूबसूरत और क़ाबिल दुरस्त। वज़ीर उसको बहुत प्यार करता था , रखता था। चुनांचा  दीवान खाने के पिछवाड़े एक रंग महल उसकी खातिर बनवा दिया था ,और लड़किया उम्दा की उसकी मुसाहेबात  में और कनीज़े शकील खिदमत में रहती ,उनसे हंसी ख़ुशी खेला कूदा करती।

 

           अचानक जिस दिन वज़ीर को महबूस खाने भेजा ,वह लड़की हम जोलियो में बैठी थी ,और ख़ुशी से गुड़िया का बियाह  रचाया था ,और ढोलक लिए हुए रतजगे की तैयारी कर रही थी ,और कढ़ाई चढ़ा कर गुलगुले तलती और बना रही थी  ,की एक बरगी उसकी माँ रोती पीटती ,सर खुले ,पाओ नंगे ,बेटी के घर में गयी और दो थप्पड़ लड़की के सर पर मारी और कहने लगी : काश् के तेरे बदले खुदा ने बेटा देता ,तो मेरा कलेजा ठंडा होता ,और बाप का रफ़ीक़ होता। वज़ीर ज़ादी ने पूछा : अँधा बेटा तुम्हारे किस काम आता ?जो कुछ बेटा कर सकता वो मैं भी कर सकती हु।  अम्मा ने जवाब दिया : खाक तेरे सर पे यह बीता बीती है की बादशाह के रु बा रु कुछ ऐसी बात कही की बंदी खाने में  क़ैद हुआ। उसने पूछा वह क्या बात थी ? ज़रा मैं भी सुनु। तब वज़ीर के क़बीले ने कहा की तेरे बाप  ने शायद यह कहा की निशा पुर में कोई सौदागर है ,उसने बारह अदद लाल बे बहा कुत्ते के पट्टे में टांके है। बादशाह को  बावर न हुआ ,उसे झूठा समझा और असेर किया। अगर आज के दिन बेटा होता ,तो हर तरह   से कोशिश  कर कर ,उस बात को तहक़ीक़ करता ,और अपने बाप का सहारा बनता ,और बादशाह से अर्ज़ मरूज़ करके ,मेरे शौहर को पंडित खाने से मुख्लिसि दिलवाता।

वज़ीर ज़ादी बोली : अम्मा जान ! तक़दीर से लड़ा नहीं जाता। चाहिए इंसान बलाये नागहानी में सब्र करे। और उम्मीद वार अफ़ज़ल इलाही  कार है। वह करीम है ,मुश्किल किसी की अटकी नहीं रखता। और रोना धोना खूब नहीं  ,दुश्मन और तरह से बादशाह के पास लगाए ,और चुगली खाये। बल्कि जहा पनाह के हक़  में दुआ करो ,हम उसके खाना ज़ाद है  ,वह हमारा खुदा वंद है ,वही गज़ब हुआ है ,वही मेहरबान होगा। उस लड़की ने अक़्ल मंदी से ऐसी ऐसी तरह माँ को  समझाया की कुछ उसको सब्र व क़रार आया। तब अपने महल में गयी और चुपकी हो रही। जब  रात हुई ,वज़ीर ज़ादी ने  दादा को बुलाया ,उसके हाथ पाओ पड़ी ,बहुत सी मन्नत की और रोने लगी और कहा :मैं यह इरादा रखती हु की अम्मा जान का ताना मुझ पर न रहे ,और मेरा बाप मुख्लिसि पाए। जो तेरा मेरा रफ़ीक़ हो तो मैं निशा पुर को चलु ,और उस ताजिर को देख कर जो बन आये कर आऊँ ,और अपने बाप को छुड़ाऊँ।

पहले तो उस मर्द ने इंकार किया ,आखिर बहुत कहने सुनने से राज़ी हुआ। तब वज़ीर ज़ादी ने फ़रमाया : चुपके चुपके  असबाब सफर का दरुस्त कर ,और जींस तेजारत के लायक नज़र बादशाहो के खरीद कर ,और गुलाम व नौकर  चाकर जितने ज़रूर हो साथ ले ,लेकिन यह बात किसी  पर न खुले। दादा ने क़ुबूल किया और उसकी तैयारी  में लगा। जब सब असबाब मुहैय्या किया ,ऊँटो और खच्चरों पर बार कर कर रवाना हुआ। और वज़ीर ज़ादी भी लिबास  मरदाना पहन कर साथ जा मिली ,हरगिज़ किसी को घर में खबर न हुई। हु ,वज़ीर के महल में चर्चा हुआ की  वज़ीर ज़ादी गायब है ,मालूम नहीं किया हुई।

आखिर बदनामी के डर से ,से माँ ने बेटी का ग़ुम  होना छिपाया। और वहा वज़ीर ज़ादी ने अपना नाम सौदागर बच्चा रखा। मंज़िल बा मंज़िल चलते चलते निशा पुर में पहुंची। ख़ुशी बा ख़ुशी का रवा सिरा में जा उतरी ,और सब अपना असबाब  उतारा। रात को रही ,फज्र को हम्माम में गयी और पोशाक पाकीज़ा जैसे रोम के बाशिंदे पहनते है ,पहनी.और शहर  के वास्ते निकली। आते आते जब चौक में पहुची ,चौराहे पर खड़ी हुई। एक तरफ दुकान जोहरी की नज़र पड़ी की बहुत से जवाहर का ढेर लग रहा है ,और हुलाम लिबास फाख्रा पहने हुए दस्त बद्सता खड़े हैऔर एक शख्स  जो सरदार है ,बरस पचास एक की उसकी उम्र है ,और कई मुसाहब नज़दीक उसके कुर्सियों पर बैठे  है और आपस में बाते कर रहे है।

वह वज़ीर ज़ादी  उसे देख कर हैरान हुई ,और दिल में समझ कर खुश हुई की खुदा झूठ न करे ,जिस सौदागर का मेरे  बाप ने बादशाह से मज़कूर किया है ,मुमकिन हो यही हो। बारे खुदा ! उसका अहवाल मुझ पर ज़ाहिर लकर। अचानक  एक  तरफ जो देखा दुकान है ,उसमे दो पिंजरे आहनि लटकते ,है और उन दोनों में दो आदमी क़ैद है। उनकी मजनू की  सी सूरत  हो रही है की चरम बाक़ी है ,और सर के बाल और नाख़ून  बढ़ गए है ,सर औंधे बैठे है और  दो हब्शी मुसलह दोनों तरफ खड़े है। सौदगर बच्चे को अचंभा आया ,ला हौल पढ़ कर ,दूसरी तरफ जो देखा तो  एक दुकान में कालीन बिछे है , उन पर एक चौकी हाथी दांत की ,उस पर गूदेला मखमल पड़ा हुआ , एक कुत्ता जवाहर का पट्टा गले में  और  सोने की ज़ंजीर से बंधा हुआ बैठा है।  और दो गुलाम मर्द ,खूब सूरत उसकी खिदमत  कर रहे है ,एक तो मोरछल जड़ाओ का लिए झेलता है। और दूसरा रुमाल  तार कशी का हाथ में लेकर मुँह और पाओ  पोंछ रहा है। सौदागर बच्चे ने खूब गौर कर कर जो देखा तो पट्टे में कुत्ते के बारहवीं दाने लाल के जैसे सुने थे ,मौजूद है। शुक्र खुदा का किया ,और फ़िक्र में गया की किस सूरत से उन लालो का बादशाह पास ले जाउ ,और दिखा  कर अपने बाप को छुड़ाऊँ ? यह तो हैरानी में थी और तमाम खलकत चौक और रस्ते की उस हुस्न व जमाल देख कर हैरान थी ,और हक्का बक्का हो रही थी। सब आदमी आपस में यह चर्चा करते थे की आज तलक उस सूरत व शबीह  का इंसान नज़र नहीं आया। उस ख्वाजा ने  भी देखा ,एक गुलाम को भेजा की तो जाकर ,बा मिन्नत उस  सौदागर बच्चे को मेरे पास बुला ला। 




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